Monday, April 11, 2011

अभी शाम है ...

हर शाम के बाद सुबह , हर सुबह के बाद शाम । यह तो प्रकृति का नियम है । अभी शाम है ...
मेरे दोस्त । सुबह का इन्तजार करो । आनेवाला ही है । फ़िर डर कैसा ? जम कर करो ,इन्तजार ।

Tuesday, February 8, 2011

भूदान आन्दोलन

विनोबा भावे ने १९५० -६० के दशक में भूदान आन्दोलन चलाया ,उसे सफलता भी मिली . कई लोगो ने अपनी जमीने दान में दी ,पर उसका वितरण बहुत बाद में १९६९ से जाकर शुरू हुआ ,अतः उसका फायदा भूमिहीन कृषकों को नहीं मिल सका .कई जमींदारों और भूमिपतियों की नयी पीढ़ी ने जमीनें देने से इनकार कर दिया .इसका सबसे अभिक नुक्सान भूमिहीन कृषकों को हुआ .एक तो वितरण देरी से हुआ और दुसरे सही लोगों को अर्थात जिनको जरुरत थी उन्हें जमीने नहीं दी गयी .कुछ जमीने तो एकदम बेकार थी जिसपर खेती नहीं की जा सकती थी .इस प्रकार लापरवाही के कारण एक अच्छे प्रयास का अच्छा परिणाम नहीं आ सका जिसकी उम्मीद थी .वैसे भूदान आन्दोलन को सफलता सबसे अधिक उन क्षेत्रों में मिली जहाँ पर भूमि सुधार आन्दोलन को सफलता नहीं मिल पायी थी .बिहार ,ओड़िसा और आंध्र प्रदेश में इसे सबसे अधिक सफलता मिली थी .यहाँ पर भूमि सुधार कार्यक्रम के सफल न हो पाने के कारण इसका भी कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा और फिर बहुत लोग अपनी बातों से मुकर भी गए .अगर विनोबा भावे के जिन्दा रहते यदि भूमि वितरण का काम किया जाता तो इसे अधिक सफलता मिलती .आज भारत में खाद्य सुरक्षा की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है , इसका एक प्रमुख कारण भूमि का सही वितरण न हो पाना और भूमि सुधार कार्यक्रम का सफल न हो पाना भी है .

Wednesday, January 19, 2011

थिरकने दो...

कदम थिरक रहे है । रोको मत । थिरकने दो ।
यह नई दिशा देगा । दिमाग को लचीला बनाएगा ।
जीना सिखलाएगा । यही तो साँसों में दम भरेगा ।
....तो रोको मत । थिरकने दो ।

एक तारा कहीं खो गया है ...

चल तो रहा हूँ । पेड़ों की छांव भी है ....
....पर चैन नही । एक तारा कहीं खो गया है ।